बैंकिंग और आर्थिक शब्दावली

बैंकिंग और आर्थिक शब्दावली

सरकारी राजस्व और व्यय (गवर्नमेंट रेवेन्यू और स्पेंडिंग)

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सरकारी बजट में कुल मिलाकर कमाई और खर्च का हिसाब-किताब होता है। इनको दो हिस्सों – रेवेन्यू (आमदनी) और कैपिटल (पूंजी) में बांटा जाता है। खर्च को भी दो हिस्सों प्लान (योजना) और नॉन-प्लान (गैर-योजना) में बांटा जाता है।

ग्रॉस टैक्स रेवेन्यू
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सरकार के टैक्स से होने वाली कमाई से राज्यों को फाइनैंस कमिशन के बताए हिसाब से उनका हिस्सा देना होता है। बाकी रकम केंद्र सरकार के पास रह जाती है ।

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नॉन टैक्स रेवेन्यू
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इस मद में जो अहम आमदनी आती है, वह है सरकार की तरफ से दिए गए लोन पर मिलने वाला ब्याज और पब्लिक सेक्टर यूनिट में हिस्सेदारी पर उनसे मिलने वाला डिविडेंड और प्रॉफिट। सरकार को अलग-अलग सर्विसेज से भी आमदनी होती है, जिनमें उसकी तरफ से मुहैया कराई जाने वाली पब्लिक सर्विसेज भी शामिल हैं। इसमें से सिर्फ रेलवे अलग डिपार्टमेंट है लेकिन इसकी समूची आमदनी और खर्च कंसॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया में जमा होता है और निकलता है।

कैपिटल रिसीट्स
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इनमें लोन और अडवांसेज की रिकवरी शामिल है।

मिसलेनियस कैपिटल रिसीट्स

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इसमें मुख्य रूप से पीएसयू डिसइन्वेस्टमेंट से मिलने वाला रिसीट शामिल होती है।

एक्सपेंडिचर
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सरकारी खर्च के बारे में जानने से पहले हमारे लिए प्लान और नॉन प्लान स्पेंडिंग और सेंट्रल प्लान के बारे में जानना जरूरी होगा।

ग्रॉस बजटरी सपोर्ट
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पंचवर्षीय योजना को पांच सालाना योजना में बांटा गया है। प्लान फंडिंग को सरकारी सपोर्ट (बजट से) और सरकारी कंपनियों के इंटरनल और एक्सट्रा बजटरी रिसोर्सेज में बांटा गया है। प्लान के सरकारी सपोर्ट, जिसमें राज्यों का प्लान शामिल होता है, को ग्रॉस बजटरी सपोर्ट कहा जाता है।

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प्लान एक्सपेंडिचर
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यह मुख्य रूप से सालाना प्लान को मिलने वाला बजट सपोर्ट होता है। इसमें मुख्य रूप से डिवेलपमेंट (हेल्थ, एजुकेशन, इंफ्रा और सोशल) पर होने वाला खर्च शामिल होता है। सभी बजट मदों की तरह ही इसको भी रेवेन्यू और कैपिटल कंपोनेंट में बांटा जाता है।

नॉन प्लान एक्सपेंडिचर
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इसमें कंजम्पशन वाले एक्सपेंडिचर, खासतौर पर रेवेन्यू एक्सपेंडिचर आते हैं। इसमें इंटरेस्ट भुगतान, सब्सिडी, सैलरी, डिफेंस और पेंशन शामिल होता है। इसका कैपिटल कंपोनेंट बहुत छोटा होता है, जिसका बड़ा हिस्सा डिफेंस को जाता है।

आमदनी और खर्च के बीच का अंतर
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जब सरकारी एक्सपेंडिचर रिसीट से ज्यादा हो जाता है तो उस कमी को पूरा करने के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़ता है। इस डेफिसिट का देश की इकनॉमी पर गहरा असर पड़ता है क्योंकि इसमें कमी करने की कोशिश में पब्लिक डेट बढ़ता है और ज्यादा इंटरेस्ट पेमेंट पर रेवेन्यू में सेंध लगती है।

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पब्लिक डेट
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सरकार जो कर्ज लेती है, उसका बोझ आखिरकार देश की जनता को उठाना पड़ता है इसलिए इसे पब्लिक डेट कहा जाता है। इसे दो मदों में बांटा जाता है: इंटरनल डेट (देश में जुटाया गया कर्ज) और एक्सटर्नल डेट (गैरभारतीय स्रोतों से जुटाया गया कर्ज)।

सकल घरेलू उत्पाद (GDP)
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देश की अर्थव्यवस्था के सभी उत्पादक सेक्टरों के उत्पादन का मूल्य ।

राजकोषीय घाटा (Fiscal deficit)
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आय और खर्च के अंतर को पाटने के लिए हर साल सरकार की ओर से लिया जाने वाला अतिरिक्त कर्ज। देखा जाए तो राजकोषीय घाटा घरेलू कर्ज पर बढऩे वाला अतिरिक्त बोझ ही है।

सब्सिडी
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आर्थिक असमानता दूर करने के लिए सरकार की ओर से आम लोगों को दिया जाने वाला आर्थिक लाभ। यह नकद भी हो सकता है। कंपनियों को सब्सिडी टैक्स छूट के तौर पर दी जाती है ताकि औद्योगिक गतिविधियां बढ़ें और रोजगार पैदा हो।

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पूंजीगत और राजस्व खर्च (Capital and revenue expenditure)
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सब्सिडी और कर्ज पर ब्याज का भुगतान जैसे परिसंपत्ति का निर्माण न करने वाले खर्च राजस्व खर्च कहलाते हैं। जबकि राजमार्गों और डैम के निर्माण या राज्यों को केंद्र की ओर से दिया जाने वाला कर्ज पूंजीगत खर्च कहलाता है।

योजना और गैर योजना व्यय (Plan and non-plan expenditure)
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आयोजना खर्च में एक वार्षिक फंड शामिल होता है, जो योजना आयोग की ओर से पांच साल के दौरान विकास योजना पर होने वाले खर्च को देखते हुए आवंटित किया जाता है। जबकि गैर आयोजना व्यय में रक्षा, सब्सिडी, ब्याज भुगतान, पेंशन और योजनागत परियोजनाओं को किए जाने वाले सारे खर्च शामिल होते हैं।

कर राजस्व (Tax revenue)
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सरकार अपने खर्च चलाने के लिए लोगों और कंपनियों पर सीधे टैक्स लगाती है। वह लोगों की ओर से इस्तेमाल वस्तुओं और सेवाओं पर भी टैक्स लगाती है। यह सरकार की आय का प्राथमिक और प्रमुख स्रोत है।

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गैर कर राजस्व (Non tax revenue)
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प्रत्यक्ष (डायरेक्ट टैक्स) और अप्रत्यक्ष कर (इनडायरेक्ट टैक्स) के अलावा सरकार के राजस्व का स्रोत । इसमें सरकार को हासिल होने वाला ब्याज, स्पेक्ट्रम नीलामी से हासिल पैसा और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सरकारी हिस्सेदारी से हासिल रकम शामिल है।

कर्ज अदायगी (Debt servicing)
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जिस तरह कोई उपभोक्ता अपने कर्ज को मूलधन और ब्याज के तौर पर एक निश्चित अंतराल में चुकाता है उसी तरह सरकार भी अपने बाहरी कर्ज को कई तरह की एजेंसियों और आतंरिक कर्ज लेकर जुटाती है। अमूमन बांड बेच कर जुटाए गए पैसे का इसमें इस्तेमाल होता है।

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डायरेक्ट टैक्स (प्रत्यक्ष कर)
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वह टैक्स, जिसे आपसे सीधे तौर पर वसूला जाता है। मसलन, इन्कम टैक्स, व्यवसाय से आय पर कर, शेयर या दूसरी संपत्तियों से आय पर कर, प्रॉपर्टी टैक्स ।

इन्डायरेक्ट टैक्स (अप्रत्यक्ष कर)
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वह टैक्स, जिसे आप सीधा नहीं जमा कराते, लेकिन यह आप ही से किसी और रूप में वसूला जाता है। देश में तैयार, आयात या निर्यात किए गए सभी सामानों पर लगाए जाने वाले अप्रत्यक्ष कर कहलाते हैं। इसमें उत्पाद कर और सीमा शुल्क शामिल किए जाते हैं।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI):
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किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारत स्थित किसी कंपनी में अपनी शाखा, प्रतिनिधि कार्यालय या सहायक कंपनी द्वारा निवेश करने को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहते हैं।

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इन्कम टैक्स
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वह टैक्स, जो सरकार आपकी आय पर आय में से लेती है। आपकी आमदनी के पहले 1.8 लाख रुपये पर कोई कर नहीं लगता। 1.8 लाख के बाद की कमाई पर टैक्स लगता है। जिनकी तनख्वाह दस लाख रुपये सालाना से ज़्यादा है, वो टैक्स के ऊपर भी टैक्स देते हैं, जिसे सरचार्ज कहा जाता है। इन्कम टैक्स में निजी कमाई और कंपनियों की आमदनी दोनों शामिल हैं।

एक्साइज़ ड्यूटी
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यह देश में बने और यहीं बिकने वाले सामान पर वसूला जाता है… कंपनियों को फैक्ट्री में से सामान निकालने से पहले इसे भरना ज़रूरी है… यह ज़रूरी नहीं कि एक ही तरह की चीज़ों पर बराबर एक्साइज़ ड्यूटी लगाई जाए… यह सरकार की कमाई के सबसे बड़े साधनों में से एक है…

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फ्रिंज बेनेफिट टैक्स (FBT)
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कंपनियां अपने कमर्चारियों को फोन, कार या एलटीए, एलटीसी जैसी यात्राओं के लिए सुविधाएं देती हैं… इनके बदले उन पर जो टैक्स लगाया जाता है, उसे एफबीटी कहते हैं… लेकिन अधिकतर उद्योग संगठन अथवा कंपनियां एफबीटी का बोझ कमर्चारियों पर ही डाल देती हैं और इसे उनकी तनख्वाह में से काटा जाता है… कंपनियां एफबीटी को टैक्स की दोहरी मार मानती हैं, क्योंकि वे आय पर भी टैक्स देती हैं और सहूलियतों पर भी…

सेल्स टैक्स
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सरकार किसी भी सामान की खरीद-फरोख्त पर कर वसूलती है… देश के ज्यादातर राज्यों मे अब सेल्स टैस की जगह वैट ने ले ली है, लेकिन सेल्स टैक्स सेवाओं पर भी वसूला जाता है… एक राज्य से दूसरे राज्य में सामान के जाने पर चार फीसदी केन्द्रीय सेल्स टैक्स (सीएसटी) लगाया जाता है, जिसे अब धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है…

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वैट (वैल्यू ऐडेड टैक्स)
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वैट वह कर है, जो आप किसी सामान की खरीद पर देते हैं… यह कर सेवाओं पर नहीं होता… जिन राज्यों में वैट लागू है, वहां पर एक्साइज़ ड्यूटी और सर्विस टैक्स अलग से वसूला जाता है। वैट राज्य स्तर पर वसूला जाता है… वैट वसूली की चार दरें हैं – यह शून्य से साढ़े बारह फीसदी तक होती हैं… ज़रुरी सामान – जैसे जीवनरक्षक दवाओं पर कोई वैट नहीं लगता, जबकि तंबाकू, शराब जैसे चीज़ों पर साढ़े बारह फीसदी की दर से वैट वसूला जाता है…

सर्विस टैक्स
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वह कर, जो आप सेवाओं पर देते हैं… जम्मू−कश्मीर के अलावा बाकी सभी राज्यों में सर्विस प्रोवाइडर को सर्विस टैक्स देना होता है… पहले यह 10 फीसदी था, लेकिन आर्थिक मंदी के चलते अब इसे घटाकर 12.36 फीसदी कर दिया गया है… सर्विस टैक्स फोन, रेस्तरां में खाना, ब्यूटी पार्लर या जिम जाने जैसी सेवाओं पर वसूला जाता है…

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औद्योगिक कर
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औद्योगिक प्रतिष्ठानों पर लगाए जाने वाले कर। यह उस प्रतिष्ठान के मालिक पर लगाए गए व्यक्तिगत कर से अलग होता है ।

चालू खाता घाटा
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जब किसी देश की वस्तुओं, सेवाओं और ट्रांसफर का आयात इनके निर्यात से ज्यादा हो जाता है, तब चालू खाते घाटा की स्थिति पैदा होता है। यानी, जब भारत में बनी चीजों और सेवाओं का बाहर निर्यात होता है तो इससे भुगतान हासिल होता है। दूसरी ओर, जब कोई भी वस्तु या सर्विस आयात की जाती है तो उसकी कीमत चुकानी पड़ती है। इस तरह, देश में प्राप्त भुगतान और बाहरी देशों को चुकाई गई कीमत में जो अंतर आता है वह चालू खाता घाटा कहलाता है।

सरकारी राजस्व व व्यय
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सरकारी राजस्व सरकार को उसके सभी स्रोतों से होने वाली आमदनी होता है। इसके विपरीत सरकार जिन-जिन मदों में खर्च करती है उसे सरकारी व्यय कहते हैं। यह सरकार की वित्तीय नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।

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बजट आकलन
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वित्तमंत्री संसद में बजट प्रस्ताव रखते हुए विभिन्न तरह के कर और शुल्क के माध्यम से होने वाली आमदनी और योजनाओं व अन्य तरह के खर्चों का लेखा पेश करते हैं, उसे आमतौर पर बजट आकलन कहा जाता है।

वित्त विधेयक
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इस विधेयक के माध्यम से ही आम बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री सरकारी आमदनी बढ़ाने के विचार से नए करों आदि का प्रस्ताव करते हैं। इसके साथ ही वित्त विधेयक में मौजूदा कर प्रणाली में किसी तरह का संशोधन आदि को प्रस्तावित किया जाता है। संसद की मंजूरी मिलने के बाद ही इसे लागू किया जाता है।

राजस्व सरप्लस
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यदि राजस्व प्राप्तियां राजस्व खर्च से अधिक हैं, तो यह अंतर राजस्व सरप्लस की श्रेणी में होगा।

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विनियोग विधेयक
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विनियोग विधेयक का सीधा अर्थ यह है कि तमाम तरह के उपायों के बावजूद सरकारी खर्चे पूरे करने के लिए सरकार की कमाई नाकाफी है और सरकार को इस मद के खर्चे पूरे करने के लिए संचित निधि से धन की जरूरत है। एक तरह से वित्तमंत्री इस विधेयक के माध्यम से संसद से संचित निधि से धन निकालने की अनुमति मांगते हैं।

पूंजी बजट
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बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री सरकारी आमदनी का ब्योरा पेश करते हैं, उनमें पूंजीगत आय भी शामिल होती है। यानी, इसमें सरकार द्वारा रिजर्व बैंक और विदेशी बैंक से लिए जाने वाले कर्ज, ट्रेजरी चालानों की बिक्री से होने वाली आय के साथ ही पूर्व में राज्यों को दिए गए कर्जों की वसूली से आए धन का हिसाब-किताब भी इस पूंजी बजट का हिस्सा है।

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संशोधित आकलन
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यह बजट में खर्चों के पूर्वानुमान और वास्तविक खर्चों के अंतर का ब्योरा है।

पूंजी भुगतान
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सरकार को किसी तरह की परिसंपत्ति खरीदने के लिए जो भुगतान देना होता है, वह इस श्रेणी में आता है। केंद्र सरकार द्वारा राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और सार्वजनिक उपक्रमों को मंजूर कर्ज और अग्रिम राशि भी पूंजी खर्च के रूप में जाना जाता है।

पूंजी प्राप्तियां
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रिजर्व बैंक अथवा अन्य एजेंसियों से प्राप्त कर्ज, ट्रेजरी चालान की बिक्री से होने वाली आमदनी के साथ ही राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को दिए गए पिछले कर्जों की उगाही और सार्वजनिक उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी बेचने से प्राप्त धन भी इसी श्रेणी में आते हैं।

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अनुदान मांग
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संचित कोष से मांगे गए धन के खर्चों का अनुमानित लेखा-जोखा ही अनुदान मांग है।

योजना खर्च
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राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सहायता के अलावा केंद्र सरकार की योजनाओं पर होने वाले सभी तरह के खर्चों को इसमें शामिल किया जाता है।

गैर योजना खर्च
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इसमें ब्याज की अदायगी, रक्षा, सब्सिडी, डाक घाटा, पुलिस, पेंशन, आर्थिक सेवाएं, सार्वजनिक उपक्रमों को दिए जाने वाले कर्ज और राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और विदेशी सरकारों को दिए जाने वाले कर्ज शामिल होते हैं।

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संदर्भित दर तथा प्रमुख उधारी दर (Prime Landing Rate-PLR)
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संदर्भित दर, पूंजी बाजार का निर्धारण करती है । यह दर न्यूनतम दर होती है जिस पर पूंजी बाजार में उधार लिया या दिया जाता है । बाजार में प्रचलित ब्याज दर, जिस पर सामान्यतया समझौता होता है, संदर्भित दर से ऊंची होती है । इसके द्वारा ब्याज दर में होने वाला परिवर्तन निर्देशित होता है । विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न नामों से संदर्भित दरों को जाना जाता है ।
उदाहरण के तौर पर,
(1) अमरीका में Feds Funds Rates
(2) जर्मनी में फ्रंकफर्ट इंटर बैंक ऑफर्ड रेट (FIBOR)
(3) जापान में टोकियो इंटर बैंक ऑफर्ड रेट (TIBOR)
(4) लंदन में लंदन इंटर बैंक ऑफर्ड रेट (LIBOR)

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Prime Lending Rate(प्रधान उधारी दर)- 
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वह ब्याज जिस पर बैंक अपने सर्वप्रिय (विश्वसनीय) ग्राहक को ऋण देता है । PLR एक प्रकार के आधार ब्याज दर की भूमिका अदा करता है । इसी PLR के आधार पर उद्यमियों को ऋण दिया जाता है ।

आई.पी.ओ (Initial Public Offer)
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इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग से किसी कंपनी द्वारा जारी किया गया वह प्रारंभिक निर्गम है जो जनता द्वारा अंशदान करने के लिए किया जाता है ।

प्लास्टिक मनी
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प्लास्टिक मनी से तात्पर्य विभिन्न बैंकों, वित्तीय संस्थानों द्वारा जारी की जाने वाली क्रेडिट कार्ड से है।

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लीड बैंक योजना
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1969 में इस योजना से देश के प्रत्येक जिले में बैंक शाखाओं की संख्या के आधार पर एक बैंक को लीड बैंक घोषित किया जाता है।

चेक
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चेक एक प्रकार का बिल ऑफ एक्सचेंज होती है। जो एक निर्दिष्ट बैंक के ऊपर आधारित होती है।

डी-मैट अकाउंट
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यह एक प्रकार का बैंक खाता है जहां रुपयों की जगह शेयर व बॉन्ड रखे जाते हैं।

हालमार्क
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स्वर्णाभूषण गुणवत्ता निर्धारण करने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो ने हालमार्क योजना 2000 में शुरू की।

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हवाला
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हवाला, विदेशी विनमय चैनलों के समनांतर एक प्रणाली है। जिसमें भुगतान घरेलू मुद्रा में व इसके बदले में विदेशों में विदेशी मुद्रा में आपूर्ति की जाती है।

काला धन
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जिस धन पर प्रत्यक्ष कर नहीं दिया जाता उसे काला धन कहते हैं।

ब्रिज लोन
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जब कोइ कंपनी अपनी पूंजी के विस्तार के लिए अपने नए शेयर व डिबेंचर्स जारी करता है। कंपनी को इस दौरान पूंजी जुटाने में काफी समय लगता है। इस दौरान धन की कमी पूरी करने के लिए कंपनी बैंको से अल्पअवधि ऋण लेती हैं जिन्हे ब्रिज लोन कहते हैं।

हार्ड करेंसी
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अंतरराष्ट्रीय बाजार में जिस मुद्रा की आपूर्ति की तुलना में मांग अधिक रहती है, हार्ड करेंसी कहलाती है । जैसे- डॉलर, यूरो, पौंड आदि ।

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सॉफ्ट लोन
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जिस ऋण को कम ब्याज एवं लंबी भुगतान अवधि जैसी आसान शर्तों पर उपलब्ध कराया जाता है, सॉफ्ट लोन कहलाता है ।

नेट बैकिंग
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इंटरनेट के जरिए घर बैठे बैंकिंग कार्यों का संचालन नेट बैंकिग कहलाता है ।

एम्बार्गो
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यह एक व्यापार प्रतिबंध है जिसके अंर्तगत एक या कई राष्ट्र मिलकर दूसरें देशों के साथ अपना पूरा व्यापार बंद कर देते हैं।

स्वीट शेयर
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वह शेयर जो कंपनी के कर्मचारी किसी को रियायती दरों में उपलब्ध कराते हैं ।

म्यचुअल फंड
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म्यूचुअल फंड के अंतर्गत जन साधारण के निवेश योग्य धन को उनकी मर्जी पर बेहतर अवसरों वाली जगहों पर प्रयोग किया जाता है ।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)
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पूंजी बाजार में निवेश को संरक्षण प्रदान करने तथा निवेशों में विश्वास की भावना उत्पन्न करने के उद्देश्य से 1988 स्श्वक्चढ्ढ में की स्थापना की गई और 1992 में एक अधिनियम द्वारा इस संस्था को वैधानिक दर्जा प्रदान कर दिया गया । इसका मुख्यालय मुंबई में है ।

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